महर्षि वाल्मीकि अनुसंधान परिषद्
लोक मंगल की जिस भावना से महर्षि वाल्मीकि ने रामायण और महारामायण (योगवशिष्ठ) की रचना की, वह उनके समकालिक युग के साथ-साथ, युग-युग की प्ररेणा बन गई हैं। महर्षि वाल्मीकि विश्व संस्कृति के निर्माता और मानवता के सर्वोच्च उपदेशक थे । संसार के जीवों को सद्ज्ञान देना और तदनुरूप आचरण करने की प्रेरणा देना उनके जीवन का परम उद्देश्य था। उनके उपदेश अजर-अमर और शाश्वत हैं। महर्षि की करूणा, सृष्टि के हर प्राणी और प्रकृति के हर तृण, तरू, लता की सुरक्षा के संकल्प से भरी हुई हैं। महर्षि वाल्मीकि द्वारा विरचित काव्यों में रामायण एक अमर रचना हैं। भारतीय साहित्य में वाल्मीकि रामायण से प्ररेणा लेकर अनेकों कवि, नाटककार तथा उपन्यासकार साहित्य सृजन करते रहे हैं। इसी कड़ी में कालिदास, तुलसीदास, सूरदास, गुरू गोविंद सिंह, मैथिली शरण गुप्त, निराला आदि सैकड़ों कवियों ने आदिकवि महर्षि वाल्मीकि जी से प्रेरित होकर अपनी काव्य रचना की हैं | रामायण धर्म और संस्कृति का जीवंत प्रतीक हैं। भारतीय सभ्यता, संस्कृति एवं साहित्य महर्षि वाल्मीकि की महान देन है। रामायण की रचना के प्राकृत या वैकृत अंश हमें महाभारत, पुराणों, बौद्ध, जैन आदि ग्रंथों में मिलते हैं। विभिन्न भाषाओं में महर्षि वाल्मीकि रामायण से प्रभावित काव्य सहस्त्रों संख्या को पार कर चुके हैं। इससे सहज ही हमें महर्षि वाल्मीकि रामायण की लोकप्रियता का ज्ञान हो जाता है। ठीक ही कहा गया हैं- "रम्या रामायणी कथा"
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